दर्द गढ़वाली की ग़ज़लों में समाज की सच्चाई
दर्द गढ़वाली के ग़ज़ल संग्रह 'इश्क़-मुहब्बत जारी रक्खो' की समीक्षा

ग़ज़ल उर्दू साहित्य की एक ऐसी सम्पन्न विधा है, जो निरन्तर लोकप्रियता के पायदान पर चढ़ती चली जा रही है। दुष्यंत कुमार के साथ ही देवनागरी लिपि में भी अनेकानेक शायरों के ग़ज़ल संग्रह शाया होने का सिलसिला शुरू हुआ। अब तो नये-नये तेवर लिए ग़ज़ल सामने आ रही है और धीरे-धीरे हिंदी-उर्दू का फासला सिमटता जा रहा है।
लक्ष्मी प्रसाद बडोनी ‘दर्द गढ़वाली’ शायरी की दुनिया में एक उभरता सितारा है, जिसके शे’र महफिलों में ख़ूब सुने और सराहे जाते हैं। इनके दो ग़ज़ल संग्रह ‘तेरे सितम तेरे करम’ और ‘धूप को सायबां समझते हैं’ मंज़रे आम पर पहले ही आ चुके हैं और इसी कड़ी में अब एक और किताब जुड़ने जा रही है ‘इश्क़ मुहब्बत ज़ारी रक्खो’ जिसके लिए मेरी दिली मुबारकबाद है।
दर्द गढ़वाली की ग़ज़लों में समाज की सच्चाई और इनकी सोच मुखर होती है। शायर अपने अनुभव और कथन से पहचाना जाता है। नया कलेवर है। उर्दू के हल्के-फुल्के अल्फ़ाजों को पिरोया है। देवनागरी में लिखा है, जो सभी को आसानी से समझ आ जाता है। दर्द का यह नया संग्रह निश्चित रूप से साहित्य जगत को समृद्ध करेगा और नये शायरों को उत्प्रेरित करेगा। दर्द गढ़वाली के नए ग़ज़ल संग्रह से कुछ शेर आपके हवाले कर रहा हूं:
याद उनकी दिला गया मौसम।
दिल मेरा फिर दुखा गया मौसम।।
है तबाही का हर तरफ आलम।
हाथ किससे मिला गया मौसम।।
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जानता हूं काम मुश्किल है मगर मैं।
दो किनारों को मिलाना चाहता हूं।।
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झूठ ही तो बिक रहा बाज़ार में।
सच कहां छपता है अब अख़बार में।।
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नफ़रतों की बात जो करते रहे हैं।
आइना उनको दिखाना चाहता हूं।।
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बात भी ठीक से नहीं करते।
आपका हमसे मस’अला क्या है।।
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मंज़िलें किस तरह से मिलेंगी तुम्हें।
पांव में कोई तो आबला चाहिए।।
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शहर में दिखता नहीं साया कहीं भी।
धूप का जंगल उगाया जा रहा है।।
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आख़िर में सहृदय एवं सहयोगी दर्द गढ़वाली के सुखद व सुंदर भविष्य हेतु हार्दिक शुभकामनाएं।
ग़ज़ल संग्रह: इश्क़-मुहब्बत जारी रक्खो
शायर: दर्द गढ़वाली, देहरादून
मोबाइल: 09455485094
पृष्ठ: 132
मूल्य: 150 रुपये
प्रकाशक: समय साक्ष्य, देहरादून
समीक्षक: कुंवर गजेंद्र सिंह गरल, वरिष्ठ शायर
मोबाइल: 82877 68174