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अब पुरस्कार के नामकरण और कैटेगराइजशन पर सवाल

- थमने का नाम नहीं ले रहा उत्तराखंड भाषा संस्थान के पुरस्कारों पर उठा विवाद, बीसियों किताबों का रचनाकार भी साहित्य गौरव और एक किताब का रचनाकार भी उत्तराखंड का साहित्य गौरव, किसी के समग्र साहित्य का चंद घंटों में कैसे हो सकता है मूल्यांकन, सवाल तो उठेंगे, एक सज्जन को तो अपात्र श्रेणी में ही दे दिया पुरस्कार, जांच हो तो खुले बात

देहरादून: उत्तराखंड में भाषा संस्थान की ओर से हाल ही में वितरित साहित्य गौरव सम्मान को लेकर उठा विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। पुरस्कारों को लेकर कई बातें कही जा रही हैं, सामने आ रही हैं, जो चर्चा का विषय बनी हुई हैं। सबसे बड़ा सवाल तो पुरस्कार के नामकरण और कैटेगराइजशन यानी श्रेणी को लेकर उठ रहा है।
दरअसल एक किताब वाले को भी साहित्य गौरव सम्मान दिया जा रहा है और बीसियों किताबों के रचनाकार को भी उत्तराखंड साहित्य गौरव पुरस्कार दिया जा रहा है। यानी, छोटे-बड़े सभी को एक ही नज़र से देखा जा रहा है। जिसने पूरी ज़िंदगी साहित्य को समर्पित कर दी है, उसे भी एक किताब वाले के समकक्ष रखा जा रहा है। यह उस साहित्यकार का सम्मान है या अपमान?
सवाल यह भी है कि किसी के समग्र साहित्य का मूल्यांकन चंद घंटों में कैसे किया जा सकता है। ऐसी स्थिति में सही मूल्यांकन को लेकर सवाल तो खड़े होंगे ही। सिर्फ़ गोपनीयता की बात कहकर मनमाने ढंग से किसी को पुरस्कृत नहीं किया जा सकता। इंटरनेट के इस दौर में हरेक का साहित्य सामने है, ऐसे में मनमाने ढंग से पुरस्कार नहीं दिए जा सकते।
भाषा विभाग से जो ख़बर छनकर मेरे पास पहुंची है, उसके अनुसार एक सज्जन को तो उस कैटेगरी में पुरस्कार मिल गया, जिसके लिए वह पात्र ही नहीं थे। भाई, ऐसे में सवाल तो उठेंगे ही और इसकी जांच होनी चाहिए।

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