देवभूमि में अनियोजित विकास को लेकर जताई गई चिंता
- सेव हिमालय मूवमेंट व पर्वतीय नवजीवन मंडल आश्रम की ओर से टाउनहॉल में हुआ कार्यक्रम, पद्मविभूषण स्व. सुंदर लाल बहुगुणा को किया याद, जनकवि स्व. घनश्याम रतूड़ी और दीक्षा बिष्ट को किया गया सुंदर लाल बहुगुणा स्मृति पुरस्कार से सम्मानित

देहरादून: सेव हिमालय मूवमेंट व पर्वतीय नवजीवन मंडल आश्रम की ओर से बुधवार को यहां टाउनहॉल में पद्म विभूषण सुंदरलाल बहुगुणा के चतुर्थ पुण्यतिथि पर आयोजित समारोह में देवभूमि में अनियोजित विकास पर चिंता व्यक्त की। इस मौके पर जन कवि आंदोलनकारी स्वर्गीय घनश्याम रतूड़ी सैलानी जी व महिला वर्ग में दीक्षा बिष्ट को पद्म विभूषण सुंदरलाल बहुगुणा स्मृति सम्मान से सम्मानित भी किया गया।
मुख्य वक्ता सामाजिक कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ने पद्मविभूषण सुंदर लाल बहुगुणा के कार्यों को याद करते हुए कहा कि उन्होंने पर्यावरण बचाने के लिए जो काम किया, उसके लिए वह हमेशा याद किए जाएंगे। वांगचुक ने कहा कि उन्होंने स्व. बहुगुणा से प्रेरणा लेकर शिक्षा और पर्यावरण के क्षेत्र में काम किया। इस मौके पर जनकवि डॉ. अतुल शर्मा ने भी जनगीत के माध्यम से पर्यावरण को लेकर चिंता जाहिर की। इस मौके पर राजीव नयन बहुगुणा ने भी अपने पिता को याद करते हुए पर्यावरण को सुरक्षित रखने पर जोर दिया। योगेश धस्माना ने कार्यक्रम का संचालन किया।
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यह है दीक्षा और घनश्याम रतूड़ी का काम
दीक्षा बिष्ट को यह सम्मान उनके जीवन भर के विभिन्न सामाजिक कार्य को देखते हुये दिया गया। उनके मुख्य कार्य में कस्तूरबा गांधी ट्रस्ट के साथ अनौपचारिक बालवाडी गठन करना 20 वर्षों से महिला संगठन गठन कर उनके साथ महिला उत्थान के लिये कार्य करना, वन बचाओ आन्दोलन के तहत 70 के दशक में टिहरी गढवाल के हॅवल घाटी व बडियारगढ़ में सक्रीय भूमिका, वनीकरण को लेकर गरुड के फल्याटी गाँव कई लाख पौधों बा रोपण व कई वर्ष तक संरक्षण, 60 के दशक में शराब बंदी आन्दोलन के दौरान कोटद्वार, घनसाली व गरुड़ में चल रहे आन्दोलन में सक्रीय भूमिका, टिहरी बाँध विरोधी आन्दोलन व् महिला जागरूकता के लिये कई किलोमीटर की पदयात्रा है। उनकी अद्भूत कार्य शैली व महिलाओं के प्रति कर्मठता को देखते हुए दीक्षा की 75 किमी की पदयात्रा के पश्चात सुन्दरलाल बहुगुणा ने उनको उत्तराखंड की शेरनी की उपाधि दी थी। पूर्व में दीक्षा को मैती सम्मान व 1992 में कस्तूरबा गांधी ट्रस्ट की ओर से इंदौर में भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा के द्वारा भारत की सर्वश्रेष्ठ सेविका का अवार्ड दिया गया है।
पुरुष वर्ग में यह सम्मान स्व. घनश्याम रतूड़ी सैलानी जी मो मरणोपरांत उनके विभिन्न जन चेतना व आन्दोलन में अपनी अहम् भूमिका के आधार पर दिया जा रहा है। धनश्याम सैलानी जी ने विभिन्न आन्दोलनों में अपनी अहम् भूमिका निभाई जिसमे मुख्यतः चिपको आन्दोलन, सर्वोदय आन्दोलन, भूदान आन्दोलन, नशाबंदी आन्दोलन, टिहरी बाँध विरोधी आन्दोलन इत्यादि में किये गए उल्लेखनीय कार्य के आधार पर अनका चयन किया गया है। चिपको को जन्म देने वाले गीत ‘चिपक जाओ, काटने मत दो, वन सम्पदा लुटने मत दो’ के रचयिता घनश्याम सैलानी रुढियों के खिलाफ बाल्यावस्था से ही मुखर थे। आंदोलनों में अपने गीतों के माध्यम से गति देने वाले घनश्याम सैलानी का गीत ‘हिटो दीदी, हिटों भुल्यों, चला गौ बचैला’, शराब बंदी आन्दोलन का मुख्य गीत बन गया । अस्पृश्यता अंधविश्वास एवं सामाजिक रुढियों के खिलाफ विद्रोह का बिगुल बजाया । अपने विद्रोही रवैय्ये व सामाजिक सकारात्मक सोच के चलते उनको एक महँ विद्रोही कवि के रूप में भी जाना जाता है।