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आम आदमी की पीड़ा को आवाज देती हैं राम-लखन शर्मा की ग़ज़लें

ग़ज़ल संग्रह ' सूरज ढल रहा है ' की समीक्षा 

हिन्दी छन्दों का अच्छा प्रैक्टिकल ज्ञान रखने वाले कवि श्री राम लखन शर्मा जो कि ‘अंकित’ उपनाम से ग़ज़ल भी कहते हैं उनका ग़ज़ल अरूज़( व्याकरण) पर भी अच्छी पकड़ है। उनका ज्ञान केवल रदीफ़ क़ाफिया तक ही सीमित नहीं है बल्कि बह्र मे मुकम्मल ग़ज़ल कहने का हुनर उन्हेँ ईश्वर ने दिया है। उनकी ग़ज़लों में ताकीदे लफ़्ज़ी, शुतुरगर्बा, तनाफुर, हश्व, तकाबुले रदीफ़ आदि का ऐब दिखाई नहीं देता है और अगर है भी तो बेख़याली में हो गया है। यह साबित नहीं करता कि उन्हें इसका ज्ञान नहीं है। वे भली भाँति इनसे वाक़िफ़ हैं।ज्योतिष शास्त्र में सूरज सभी ग्रहों का राजा कहा गया है। वह कालपुरुष की कुंडली में आत्मा का प्रतिनिधित्व करता है या यूँ कहें कि वह आत्मा है चन्द्रमा मन। चूँकि आत्मा परमात्मा का अंश है इसलिए परमात्मा के समान आत्मा भी अजर अमर है। आत्मा ईश्वर की तरह पवित्र है लेकिन उस युग में आत्मा का पतन हो रहा है। आत्मा गर्त की ओर दिन ब दिन जा रही है मनुष्य का नैतिक पतन हो रहा है अपने आचरण का आवरण उतार फेंका है। ग़ज़लकार ‘सूरज ढल रहा है’ के माध्यम से यही कुछ बताना चाहता है।
श्री राम लखन शर्मा का स्वभाव अत्यन्त सरल ,विनम्र, अहंकार से परे है वे राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत अपने कर्तव्यों के प्रति सजग हैं और यह बात उनकी ग़ज़लों में बखूबी झलकती है। उनकी ग़ज़लों में आमजन की पीड़ा भी नज़र आती है। इसी संदर्भ में उनका एक शेर देखें।
छीनकर वो हमारी हँसी ले गया
आँख को अश्क देकर खुशी ले गया।
उनकी ग़ज़लें लोगों को नसीहत भी देती हैं। मुलाहिजा फ़रमायें।
बहुत कीमती है समय ये हमारा
इसे यों हमें अब गँवाना नहीं है

सभी में विराजी वही एक सत्ता
किसी जीव को अब सताना नहीं है।

गर्मी सर्दी बरसात में देश रक्षा के लिये चौबीस घंटे मुस्तैद भारतीय सेना के वीर जवानों पर यह शेर कवि की भावना को प्रकट करता है।
हमारी ही हिफ़ाज़त को खड़े हैं दूर सीमा पर
जरूरत आ पड़ी तो फिर लहू अपना बहाया है।
आजकल कब अपने ही दगा दे जायें कुछ नहीं कहा जा सकता। अपने ही पीठ पीछे वार करते हैं। उनका यह शेर देखें –
जो हमारी पीठ पर ही कर रहा नित वार है
मत कहो अपना उसे तुम वो महा गद्दार है।
कही कहीं उनकी ग़ज़लें समझाइस भी देती हैं
यूँ नहीं आँसू बहाना चाहिए
दर्द को भी आजमाना चाहिए
इसी किताब के कुछ और शेर देखिये-
गाँधी जी की सीख मुबारक जो़ उनके अनुयायी हों
इन गालों पर चाँटे खाना अपने बस की बात नहीं
बाजारबाद पर एक शेर देखें
कीमत न जिसकी कोई यहां कल तलक रही
लोगों ने आज उसको भी मँहगा बना दिया
उनकी ग़ज़लें सीधी सपाट होने के बाद भी संदेशपरक हैं। वे उर्दू के समास युक्त शब्दों से बचते हुये हिन्दी के सरल सहज शब्दों का अपनी ग़ज़लों में प्रयोग करते हैं।
पुस्तक पठनीय एवं संग्रहणीय है।
पुस्तक मो. न. 7049110681 पर बात कर शा से प्राप्त किया जा सकता है।
पुस्तक का नाम- ‘सूरज ढल रहा है’
ग़ज़लकार – राम लखन शर्मा ‘अंकित’
मूल्य – रुपये 200/- मात्र
प्रकाशक – लोकमित्र प्रकशन शहादरा दिल्ली
समीक्षक – राम अवध विश्वकर्मा ग्वालियर
मो. 9479328400

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