पुस्तक समीक्षासाहित्य

‘शहद से भी मीठा तुम्हारा नमक’

ग़ज़लकार रामअवध विश्वकर्मा के नए ग़ज़ल संग्रह तंग आ गया सूरज की समीक्षा

  1. तेवरी और व्यंग्यात्मक ग़जलों पर काम कर रहे गिने-चुने ग़ज़लकारों में से एक हैं ग्वालियर के रामअवध विश्वकर्मा। उनका हाल ही में प्रकाशित ग़ज़ल संग्रह ‘तंग आ गया सूरज’ मिला तो मैं उसे पढ़े बिना नहीं रह सका। एक सौ ग़जलों से सुसज्जित इस ग़ज़ल संग्रह का कवर पेज भी आकर्षक बन पड़ा है। ग़ज़ल संग्रह का टाइटिल ही इतना बढ़िया है कि पन्ने टटोलने लगा। हर शे’र इतना धारदार और समसामयिक था कि पढ़ता चला गया।

मिसाल के तौर पर कुछ शे’र देखिएः

कटा बैठे हम हाथ कहने पे उसके।
बिना सोचे समझे लगाकर अंगूठा।।
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खूब थाली बजा के देख लिया।
टोटका आजमा के देख लिया।।
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वो माहिर है शातिर है अपने हुनर में।
चुरा लेगा काजल दिखे जो नज़र में।।
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अंधेरे में जो राह सबको दिखाए।
लियाकत कहां आजकल राहबर में।।
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मिल गया चोरों से चौकीदार भी क्या खूब है।
जानकर भी मौन यह सरकार भी क्या खूब है।।
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वो नाटक में गांधी का किरदार लेगा।
शहर का जो नामी-गिरामी है झूठा।।
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रामअवध इशारों-इशारों में किस तरह बड़ी बात कह देते हैं। इन शेरों में इसकी झलक साफ तौर पर देखी जा सकती हैः

जु़ल्म की तबाही से घर कोई बचा ही नहीं।
हर जु़बान चुप ऐसे जैसे कुछ हुआ ही नहीं।।
वक्त दोपहर का है और सर पे सूरज है।
आसमान का कुहरा इंच भर घटा ही नहीं।।
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बन गए हैं जादूगर आजकल जमूरे भी।
क्या गुलाब सी खुशबू देंगे ये धतूरे भी।।
नींव गर हिले तो ये जमीं पे आ जाएं।
नींव के ही दम पर तो हैं टिके कंगूरे भी।।
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हाकिम को दर्द अपना सुनाये भी वो कैसे।
रखना हो जब जुबान को ही आठों पहर बंद।।
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मौजूदा दौर की कश्मकश और विसंगतियां भी रामअवध जी की नजरों से छिप नहीं सकी। कुछ शे’र देखिएः

लूट चोरी घूसखोरी हर जगह है छल-फरेब।
विश्व में सबसे अनूठा फिर भी हिंदुस्तान है।।
सच कहे जो भी यहां पर जेल में डालो उसे।
दोस्तो हाकिम ने जारी कर दिया फरमान है।।
आप हर कानून की बेशक उड़ाएं धज्जियां।
हाकिमों से आपकी अच्छी भली पहचान है।।


समाज की तल्ख हकीकत को भी उन्होंने अपनी ग़जलियात में उजागर किया है। इसकी बानगी देखिएः
घुप अंधेरी बस्ती में रोशनी कहां साहब।
ग़मजदों की बस्ती में है खुशी कहां साहब।।
जात पांत को लेकर फूल कब झगड़ते हैं।
फूल-फूल में बोलो दुश्मनी कहां साहब।।
जिऩ्दगी को पढ़ना हो झुग्गियों में जाओ फिर।
इन किताबों में सच्ची जिऩ्दगी कहां साहब।।
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रोजमर्रा की चीजों को भी रामअवध जी ने किस कदर अशआरों में ढ़ाला है। उसकी बानगी देखिएः

दिल में कुछ ऐसी बसी है चाय।
लग रहा है जिऩ्दगी है चाय।।
लोग कहते हैं जरा रुकिए।
जाइए मत बन रही है चाय।।
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शहद से भी मीठा तुम्हारा नमक।
किया कैसे मीठा ये खारा नमक।।
कचौड़ी पकौड़ी न खाता कोई।
निभाता न गर भाईचारा नमक।।
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दांत किटकिटाएंगे रूह कांप जाएगी।
रूप जब दिखाएगी माघ-पूष की सर्दी।।
बैठकर रजाई में गर्म-गर्म काफी को।
घूंट घूंट कर पीना लग गई हो जब सर्दी।।
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कुछ और शेर जो मुझे अच्छे लगे, जिनके लिए आप भी रामअवध जी को बधाई देना चाहेंगेः

सच खबर छापी तो छापा पड़ गया अखबार पर।
सीधी साधी चोट है अभिव्यक्ति के अधिकार पर।।
स्वयं राजा ही अगर शामिल हो अत्याचार में।
कौन फिर अंकुश लगाएगा सिपहसालार पर।।
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सड़कें कटी पुल भी ढहे घर भी गिरे बरसात में।
पानी मुसीबत बन गया सबके लिए बरसात में।।
कालोनियों तक की सभी सड़कें बनी तालाब हैं।
अब तो घरों में सांप तक भी आ गए बरसात में।।
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लोगों ने जिसे कर ही दिया आज जमींदोज।
वो पेड़ मुसाफिर का सहारा भी कभी था।।
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महंगाई के असर से हैं बेअसर सभी वो।
जो खा रहे हैं काजू-बादाम और मुनक्का।।
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ऐसे ही न जाने कितने अशआरों से भरा पड़ा है रामअवध जी का ग़ज़ल संग्रह। रामअवध जी को सच्चे और अच्छे ग़ज़ल संग्रह के लिए बधाई। आप भी उन्हें बधाई देना चाहें तो इस नंबर पर दे सकते हैं।
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ग़ज़ल संग्रहः तंग आ गया सूरज
ग़ज़लकारः रामअवध विश्वकर्मा
प्रकाशकः अयन प्रकाशन, नई दिल्ली
पृष्ठः 112
प्रथम संस्करणः वर्ष 2023
मूल्यः 340 रुपये।
मोबाइलः 9479328400
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समीक्षकः दर्द गढ़वाली, देहरादून
09455485094

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