कैग की आपत्ति के बाद भी नहीं सुधरे डॉक्टर, लिख रहे ब्रांडेड दवा
-विधानसभा में पेश रिपोर्ट में स्वास्थ्य विभाग पर उठाए सवाल, कहीं फर्श पर हो रहा दवा का भंडारण, तो कहीं बांट दी एक्सपायरी दवा,गरीब मरीजों पर आर्थिक बोझ,बाहर से दवा लेने को विवश

लक्ष्मी प्रसाद बडोनी
देहरादून: भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने उत्तराखंड के स्वास्थ्य विभाग में व्याप्त अव्यवस्था पर गंभीर सवाल उठाए हैं। सरकार ने समय-समय पर गरीब मरीजों को राहत देने के उद्देश्य से दवा की लोकल पर्चेज और जेनरिक दवा लिखने के निर्देश स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को दिए, लेकिन न अधिकारी सुधरे और न डॉक्टर। कैग की आपत्ति के बावजूद आज भी सरकारी अस्पतालों के डॉक्टर ब्रांडेड दवा लिखने से बाज नहीं आ रहे, जिससे गरीब मरीजों को बाहर से दवा खरीदने के लिए विवश होना पड़ रहा है और उनकी जेब पर आर्थिक बोझ बढ़ रहा है। दवा के भंडारण की स्थिति भी खराब है। दून चिकित्सालय को छोड़कर किसी भी सरकारी अस्पताल में एयरकंडीशन फार्मेसी नहीं है। दवा ज्यादातर जगह फर्श पर रखी गई हैं। सरकार जांच की बात कहकर पल्ला झाड़ ले रही है।
सरकार ने गरीब मरीजों को निःशुल्क दवा उपलब्ध कराने के लिए नीति बनाई और समय-समय पर शासनादेश भी जारी किए, लेकिन यह क्रियान्वित होते नहीं दिखे। मार्च 2017 में सरकार ने सरकारी अस्पतालों में आने वाले मरीजों के लिए जेनेरिक दवा लिखने का आदेश जारी किया, लेकिन डॉक्टर ब्रांडेड दवा ही लिखते पाए गए। यही नहीं, सीएमओ नैनीताल को छोड़कर किसी भी जिले के सीएमओ ने इन आदेशों का पालन कराने के लिए नियमित निरीक्षण करने की जहमत तक नहीं उठाई। कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि वितरण काउंटर के भौतिक निरीक्षण में पाया गया कि डॉक्टर की लिखी दवाएं अस्पतालों में उपलब्ध नहीं थी और मरीजों को यह दवा खुले बाजार से खरीदना थी और इनमें कुछ ब्रांडेड थी। शासन की ओर से यह कहकर पल्ला झाड़ लिया गया कि (नवंबर 2022) सभी सीएमओ को औचक निरीक्षण के आदेश दिए गए हैं, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि डॉक्टर जेनरिक दवा ही लिखें।
यही नहीं, ऐसी दवाओं के लिए लोकल पर्चेज की भी व्यवस्था है, लेकिन राजकीय मेडिकल कॉलेज हल्द्वानी में तो इसके लिए कोई प्राविधान ही नहीं किया गया था। हल्द्वानी में 2016-22 की अवधि के दौरान 18 लाख 21 हजार मरीजों को निःशुल्क दवा से वंचित रखा।
कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि 21 नमूना परीक्षित अस्पतालों में निरीक्षण में पाया गया कि 38 प्रतिशत में फर्श पर दवा संग्रहित की गई थी। 90 प्रतिशत भंडारण सुविधाएं वातानुकूलन के बिना थी। 43 प्रतिशत बिना लेबल वाली अलमारी/ रैंक पर थी। 14 प्रतिशत भंडारण में दवाओं को पानी और गर्मी के पास रखा हुआ पाया गया। प्रभारी सचिव ने दवा भंडारण की कमियों पर गौर करने की बात कहकर पल्ला झाड़ लिया।
यही नहीं, देहरादून और नैनीताल जिले में अस्पतालों और औषधालयों ने उच्चाधिकारियों के निर्देश का उल्लंघन करते हुए छह और 19 माह तक अधोमानक दवा का उपयोग बंद नहीं किया। संयुक्त भौतिक सत्यापन के दौरान 13 में से तीन औषधालय में तो 34 एक्सपायर हो चुकी दवा का स्टाक पाया गया। हैरत की बात है कि 34 में से 18 दवाओं को उनकी एक्सपायरी के छह दिन से 832 दिन बाद भी मरीजों को वितरित किया गया, जो उनकी जान के लिए हानिकारक हो सकता था। इस मामले में सरकार की ओर से जांच के लिए समिति के गठन की बात कही गई।