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वन निगम कर्मियों को ‘राहत’ देने को तैयार नहीं सरकार 

- सरकार और निगम प्रबंधन ने हाईकोर्ट के आदेश को किया दरकिनार, डबल बेंच जाने की तैयारी, वन निगम कर्मियों ने भी कसी कमर, अदालत के माध्यम से भी लड़ाई रखेंगे जारी 

* लक्ष्मी प्रसाद बडोनी

देहरादून: नैनीताल हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद उत्तराखंड वन विकास निगम के कर्मचारियों की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही। निगम के 1500 से अधिक कर्मचारियों को हाईकोर्ट ने बड़ी राहत देते हुए रिकवरी आदेश को अवैध बताकर निरस्त कर दिया था, लेकिन इस आदेश को सरकार हाईकोर्ट की डबल बेंच में चुनौती देने जा रही है। बीती 12 फरवरी को अपने फैसले में कोर्ट ने स्पेशल ऑडिट से पहले विभाग द्वारा निर्धारण वेतनमान को सही माना था और सरकार को आदेश दिया था कि 3 माह के भीतर कर्मचारियों को सभी लाभ दें।

बता दें कि 1987 से काम कर रहे दैनिक वेतन कर्मचारियों को उत्तराखण्ड सरकार द्वारा 2002 में नियमित कर नौकरी के दौरान के सभी लाभ दे दिए गए। 2017 में जब स्पेशल ऑडिट हुआ तो पाया गया कि इन कर्मचारियों को गलत तरीके से सेवा में वेतनमान के निर्धारण को माना अधिक लाभ दे दिया गया है। स्पेशल ऑडिट का हवाला देते हुए जुलाई 2024 में नौकरी में अधिक लाभ लेने वालों के खिलाफ रिकवरी का आदेश निकाल दिया गया। इसे उत्तराखंड वन विकास कर्मचारी संघ ने हाईकोर्ट में चुनौती दी और कहा कि रिकवरी आदेश को निरस्त किया जाए, उनसे रिकवरी ना की जाए। इस पर हाईकोर्ट ने इन कर्मचारियों को बड़ी राहत देते हुए इन कर्मचारियों के हक पर बड़ा आदेश दिया, लेकिन निर्धारित तीन माह के भीतर सरकार और निगम प्रबंधन ने इस आदेश का अनुपालन नहीं किया। संगठन के प्रदेश महामंत्री प्रेम सिंह चौहान ने कहा कि करीब चार सौ कर्मचारी रिटायर हो चुके हैं और उनके लिए घर का खर्चा चलाना तक मुश्किल हो रखा है। ऐसे में वह रिकवरी का पैसा कैसे देंगे। उन्होंने बताया कि 31 मई को उन्होंने वन मंत्री सुबोध उनियाल को ज्ञापन सौंपा था, लेकिन कोई ठोस आश्वासन नहीं मिला।

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साल 1991 में भर्ती 1800 कर्मचारी साल 2002 में हुए थे नियमित

वन विकास निगम में स्केलर और समूह ‘घ’ में वर्ष 1991 या उससे पहले दैनिक वेतन पर भर्ती करीब 18 सौ कर्मचारियों को 2002 में नियमित किया गया था। ऐसे में ये कर्मचारी उप्र की नियमावली के अनुसार सेवा शुरू होने के दिन से ही विनियमित करने की मांग कर रहे थे। इस मामले में कर्मचारी हाईकोर्ट भी गए। लंबी लड़ाई के बाद आखिरकार फरवरी 2023 को सरकार ने आदेश किए कि 2002 में नियमित हुए इन सभी कर्मचारियों को 1991 से सेवा का लाभ दिया जाए।

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1991 से दिए गए वरिष्ठता समेत तमाम सरकारी लाभ

यानी उनको 1991 से ही वरिष्ठता के साथ वेतन भत्ते सहित तमाम लाभ दिए जाएं। इसके बाद निगम ने सरकार के आदेश का पालन करते हुए इन कर्मचारियों को वरिष्ठता के साथ वेतन-भत्ते देना शुरू कर दिया। लेकिन बाद में 11 जुलाई 2024 को सरकार ने अचानक अपने आदेश को निरस्त करते हुए सभी की वरिष्ठता समाप्त कर दी यानी अब दोबारा उनकी सेवाएं 2002 से ही मान्य होंगी।

 

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