
देहरादून: भाजपा की डबल इंजन सरकार के बावजूद उत्तराखंड में घोटालों का सिलसिला थम नहीं पा रहा है। ऊर्जा निगम के अधिकारियों को तो सरकार का जरा भी खौफ नहीं है। कार्रवाई के नाम पर खानापूर्ति की जा रही है। पिछले साल निगम के ऋषिकेश डिवीजन में 17 लाख रुपए से ज्यादा का प्रतिभूति (सिक्योरिटी) घोटाला सामने आया था। इसमें जांच तो हुई, लेकिन कार्रवाई के नाम पर उपनल से लगी एक महिला संविदा कर्मचारी को बर्खास्त कर मामले को रफा-दफा कर दिया गया। हैरत की बात यह है कि जांच का जिम्मा भी उसी डिवीजन के अधिकारियों को सौंपा गया, जिनका काम उस घोटाले को रोकना था। यानी, बिल्ली को ही दूध की ‘रखवाली’ की जिम्मेदारी दे दी गई। नतीजा वही होना था, जो पूर्व नियोजित था। यही नहीं, निदेशक (परिचालन) एमएल प्रसाद ने 23 अगस्त 2023 को स्पेशल आडिट की बात करते हुए तमाम डिवीजन में प्रतिभूति राशि से संबंधित जांच रिपोर्ट मांगी, लेकिन आज एक साल बाद भी यह रिपोर्ट उपलब्ध नहीं हुई है। ऊर्जा कामगार यूनियन ने निगम प्रबंधन से पूरे मामले की निष्पक्षता से जांच कर जवाबदेह अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई की मांग उठाई है।
ऊर्जा निगम के ऋषिकेश डिवीजन में हुए 17 लाख रुपए के इस प्रतिभूति घोटाले में हुई कार्रवाई में कई झोल हैं। सूचना अधिकार अधिनियम के तहत जो जांच रिपोर्ट हाथ लगी है, उसमें उल्लेखित बिंदुओं के अनुसार इतने बड़े वित्तीय घोटाले में प्राथमिकी तक दर्ज न कराना बड़े ‘खेल’ की तरफ इशारा कर रहा है। जिस डिवीजन में घोटाला हुआ, वहीं के अधिकारियों से जांच कराना और महज एक महिला संविदा कर्मी अंजलि रयाल को बर्खास्त करना और कर्मचारी नेताओं के दबाव के बाद कार्यालय सहायक संजय कुमार को स्थानांतरित कर देना बड़ा सवाल है।
दरअसल, ऋषिकेश विद्युत वितरण खंड के अंतर्गत कई उपभोक्ताओं ने बिजली के स्थायी और अस्थायी कनेक्शन लिए थे। इन उपभोक्ताओं के खाते में प्रतिभूति राशि जमा की जानी थी, लेकिन यह राशि जब उपभोक्ताओं को नहीं मिली और उन्होंने शिकायत दर्ज कराई तो मामला सामने आया। हैरत की बात यह है कि अधिशासी अभियंता शक्ति प्रसाद ने मामले की जानकारी अधीक्षण अभियंता या बड़े अधिकारियों को देने की बजाय मामला अपने स्तर पर ही सुलझाने का प्रयास किया और 22 जुलाई 2023 को विद्युत वितरण खंड ऋषिकेश के सहायक अभियंता (राजस्व) स्वर्ण सिंह, एसडीआओ रायवाला राजीव कुमार और विद्युत वितरण खंड ऋषिकेश के लेखाकार (कार्य) की तीन सदस्यीय जांच समिति बना दी। इस समिति ने आठ अगस्त 2023 को जांच रिपोर्ट अधिशासी अभियंता शक्ति प्रसाद को सौंप दी, जिसमें अंजलि रयाल द्वारा संबंधित उपभोक्ताओं को दी जाने वाली प्रतिभूति राशि गलत तरीके से अपने रिश्तेदारों के खातों में जमा कराने का दोषी ठहराते हुए नियमानुसार कार्रवाई की संस्तुति की गई। हैरत की बात यह है कि जांच रिपोर्ट में इस बात की भी पुष्टि की गई कि दोषी महिला संविदा कर्मी ने ब्याज मिलाकर कुल 1841711 रुपए जमा भी कर दिए हैं। जांच समिति की रिपोर्ट का अवलोकन करें तो इतने बड़े घोटाले में राजस्व की जिम्मेदारी संभालने वाले कार्मिकों को साफ बचा लिया गया। उपभोक्ताओं को लौटाई जाने वाली प्रतिभूति (सिक्योरिटी) राशि, जो तमाम अधिकारियों के स्तर से गुजरने के बाद बैंक खातों में जमा की जाती है। ऐसे में किसी भी अधिकारी की जवाबदेही तय न करना निगम प्रबंधन की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े कर रहा है।
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कई अधिकारी संदेह के घेरे में
ऊर्जा निगम का नियम है कि उपभोक्ताओं से जो भी सिक्योरिटी राशि जमा कराई जाती है, उसकी डिमांड लिस्ट बनाकर ई-मेल से ऊर्जा निगम मुख्यालय को आती है। यहां से एप्रूवल के बाद लिस्ट वापस डिवीजन चली जाती है। वहां से बैंक को भेज दी जाती है और उपभोक्ताओं के खातों में वह पैसा जमा हो जाता है। महिला कर्मचारी जो सूची बनाकर ऊर्जा निगम को भेजती थी, वह एप्रूवल के बाद बैंक भेजने से पहले बदल देती थी। सवाल ये उठ रहे कि सूची बैंक या मुख्यालय में तभी वैध मानी जाती है, जबकि उस पर अधिशासी अभियंता व अकाउंटेंट के हस्ताक्षर हों। महिला कर्मचारी जो सूची बदलकर बैंक भेजती थी, उसमें भी अधिशासी अभियंता व अकाउंटेंट के हस्ताक्षर होते थे। लिहाजा, कई अधिकारी भी सवालों के घेरे में आ रहे हैं, जिसकी उच्चस्तरीय जांच जरूरी है, ताकि भविष्य में इस तरह के घोटाले न हों।
इतनी प्रतिभूति राशि होती है जमा
एलटी कनेक्शन-1000 रुपये
एचटी कनेक्शन-10,000 रुपये