
ग़ज़ल
क़ीमते-हुस्न बढ़ा दी हमने।
दौलते-इश्क़ लुटा दी हमने।।
नाम लिया महफ़िल में उसका।
सबकी नींद उड़ा दी हमने।।
आड़े आती थी मिलने में।
सो दीवार गिरा दी हमने।।
याद दिलाती थी जो उसकी।
वो तस्वीर जला दी हमने।।
इक मुद्दत तक अब सुलगेगी।
आग दबी भड़का दी हमने।
चूम लिया उसके होंठों को।
उसकी प्यास बढ़ा दी हमने।।
जिसने हमको ग़म बख्शे थे।
उसको ‘दर्द’ दुआ दी हमने।।
दर्द गढ़वाली, देहरादून
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