
ग़ज़ल
मुहब्बत में ज़रा भी आगही अच्छी नहीं लगती।
किसी भी तौर हमको दिल्लगी अच्छी नहीं लगती।।
जहां भी हो चले आओ तुम्हें ये दिल बुलाता है।
तुम्हारे बिन हमें ये ज़िंदगी अच्छी नहीं लगती।।
मुहब्बत है हमें तुमसे ज़रा इक बार कह दो तुम।
हमें ऐ जां तुम्हारी बेरुख़ी अच्छी नहीं लगती।।
कहो तो जाम के बदले लहू अपना पिला दें हम।
तुम्हारे होंठ पर ये तिश्नगी अच्छी नहीं लगती।।
जलाया बर्क़ ने जब से तुम्हारा आशियाना है।
कहीं भी हो हमें अब रोशनी अच्छी नहीं लगती।।
मुझे तुम कह रहे हो बेवफ़ा इतना तो बतला दो।
लबों पर क्या तुम्हें मेरे हंसी अच्छी नहीं लगती।।
तुम्हें जब ताकता है आइना अच्छा नहीं लगता।
रक़ीबों से तुम्हारी दोस्ती अच्छी नहीं लगती।।
दर्द गढ़वाली, देहरादून
09455485094