साहित्य

हसरत जयपुरी: बस कंडक्टर से गीतकार तक का सफर

एक से बढ़कर एक हिट गीत लिखे हसरत जयपुरी ने

हिंदी सिनेमा में कई ऐसे गीतकार हुए जो अपने नायाब गीतों के ज़रिए आज भी लोगों के मन में ज़िंदा हैं। हसरत जयपुरी भी इन्हीं गीतकारों की फेहरिस्त में शामिल हैं। शब्दों से आशिक़ और माशूक़ के मन को बेक़रार करने का हुनर अगर किसी के गीतों में नज़र आता है, तो वह हसरत ही हैं। ‘बरसात’ फ़िल्म के लिए लिखा उनका पहला गाना, ‘जिया बेक़रार है, छाई बहार है’। आज भी मक़बूल है। इसके अलावा हसरत जयपुरी के चमन में बहारों फूल बरसाओ…, सुन साहिबा सुन…, हम दर्द के मारों का इतना फ़साना है…, इक बेवफ़ा से प्यार किया…, जाने कहां गए वो दिन… अजी अब रूठ कर कहां जाइएगा…, तेरा मेरा प्यार अमर… और बदन पे सितारे लपेटे हुए जाने तमन्ना किधर जा रही हो… जैसे गीत हैं जिनकी महक बरक़रार है।

हालांकि, गीतकार बनने का उनका सफ़र कई मंज़िलों को तय करने के बाद पूरा हुआ। काम की तलाश में जयपुर से मुंबई आए हसरत ने क़रीब आठ साल मायानगरी में बस कंडक्टरी भी की। लेकिन, हसरत के शायर बनने की एक दिलचस्प कहानी है।
जयपुर के रहने वाले हसरत ने लहरें रेट्रो को दिए एक इंटरव्यू में बताया था कि मेरी हवेली के सामने एक बड़ी ख़ूबसूरत लड़की रहती थी, जिसका नाम राधा था। मुझे उससे प्यार हो गया। इश्क़ का मज़हब से ज़ात-पात से कोई ताल्लुक नहीं होता। किसी से भी हो सकता है, कहीं भी हो सकता है। शेरो- शायरी की तालीम मैंने मेरे नाना से हासिल की, लेकिन इश्क़ का सबक़, तो राधा ने पढ़ाया कि इश्क़ क्या चीज़ है? वहां से मैं शायर बना और पहला शेर मैंने राधा के लिए कहा:-

‘तू झरोके से जो झांके तो मैं इतना पूंछूं
मेरे महबूब तुझे प्यार करूं या न करूं’

राधा की मोहब्बत में खोए रहने वाले हसरत जयपुरी की मोहब्बत लेकिन मुकम्मल न हो सकी और उन्हें इश्क़ में जुदाई का ग़म सहना पड़ा। हसरत ने बताया, ‘मैं राधा से बिछड़ कर बम्बई नौकरी करने चला आया। बम्बई में आठ बरस तक मैंने बस कंडक्टरी की।’
हसरत को कंडक्टरी काफ़ी पसंद थी और इसे वो ख़ूबसूरत नौकरी बताया करते थे। कंडक्टर के तौर पर बिताई अपनी ज़िंदगी के बारे में हसरत कहते हैं कि ये इतनी खूबसूरत नौकरी थी कि मुझे दुनिया की सूरतों के जलवे उसमें मिला करते थे। एक आता था और एक जाता था। इतना मुझे याद है कि मैंने ख़ूबसूरत लड़कियों से कभी टिकट नहीं लिया। मैंने यही कहा- तुम्हें अल्लाह ने इतना ख़ूबसूरत बनाया है। तुम्हें धरती पर बुलाया है, मेरे देखने के लिए। मैं तुमसे क्या टिकट लूंगा। और वो मुझे सलाम करके चली जातीं। उससे मुझे बहुत इंस्पिरेशन मिली। मैंने उनके ख़्यालों में उनकी यादों में बहुत ही पोयम्स कहीं।’
हसरत जयपुरी का जन्म 15 अप्रैल, 1922 को हुआ था। उनका असली नाम इक़बाल हुसैन था। बस कंडक्टरी करते हुए उन्होंने अपने अंदर के शायर को कभी मरने नहीं दिया। वो अक्सर वक़्त निकाल कर मुशायरों में जाया करते। ऐसे ही एक मुशायरे में पृथ्वीराज कपूर ने हसरत के कलाम को सुना। वो उनके कलाम से काफ़ी मुतास्सिर हुए। उन्होंने राज कपूर को हसरत के बारे में बताया। जिसके बाद उन्हें ‘बरसात’ फ़िल्म में पहला गाना जिया बेक़रार है, छाई बहार है…, आजा मोरे बालमा, तेरा इंतज़ार है…, लिखने का मौक़ा मिला।

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