पुस्तक समीक्षासाहित्य

दुष्यंत का पर्याय अशोक रावत

लब्ध प्रतिष्ठित ग़ज़लकार अशोक रावत के ग़ज़ल संग्रह "कोई पत्थर नहीं हैं हम" में झलकता है उनका व्यक्तित्व

ग़जलों की दुनिया पेज के एडमिन अशोक रावत किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। उनकी ग़जलें दुष्यंत कुमार की याद दिला देती हैं। दो दिन पहले जब आगरा निवासी रावत जी का ग़ज़ल संग्रह ‘कोई पत्थर नहीं हैं हम’ मिला तो उसी समय कुछ ग़जलें पढ़ डाली। सच कहूं तो रावत जी की किताब की मुझ जैसा अदना शायर समीक्षा नहीं कर सकता, लेकिन ग़ज़लों को पढ़कर दिल बेचैन हो गया, जिसे बयां करने से खुद को रोक नहीं पाया।
रावत जी की ग़जलों में तमाम शे’र ऐसे हुए हैं, जो उद्धृत करने लायक हैं। इनमेंः

कभी वो राह में बिखरे हुए पत्थर नहीं गिनते।
सफ़र का शौक है जिनको किलोमीटर नहीं गिनते।।
——————————–
अदावत में तो उसकी आज भी अंतर नहीं आया।
तअज्जुब है बहुत दिन से कोई पत्थर नहीं आया।।
और…

जीने का जज़्बा है थोड़ी सी खुद्दारी है।
मेरी हिम्मत मेरी हर मुश्किल पर भारी है।।…जैसे शे’र प्रमुख हैं।

 

यही नहीं, सामाजिक विषमता पर यह शेर भी काबिले-तारीफ है।
उधर कुछ लोग हैं जो बिसलरी से हाथ धोते हैं।
इधर प्यासों को पीने के लिए कतरा नहीं मिलता।।
——————————–
इस तरह गुस्सा उतारा हमने दुनिया पर।
आज अपने आप से दिन भर नहीं बोले।।
——————————–

उनके यहां फिक्र भी शिद्दत से महसूस की जा सकती है। शे’र देखिएः
उधर दुनिया कि कोई ख़्वाब सच होने नहीं देती।
इधर कुछ ख़्वाब हैं जो चैन से रहने नहीं देते।
——————————–
लोग भरोसा कर लेते हैं कैसे उन बातों पर।
इतना झूठ कि जिनका कोई छोर नहीं होता है।।
——————————–
किसी ने सामने आकर अंधेरों से नहीं पूछा।
उदासी का सबब धुंधले सवेरों से नहीं पूछा।।
——————————–
भले ही देर से पहुंचे उजालों के ठिकाने तक।
उजालों का पता हमने अंधेरों से नहीं पूछा।।
——————————–
मेज की टूटी दराजों में पड़ी हैं अर्जियां सब।
बाबुओं की टेबिलों पर केस सब अटके पड़े हैं।।
——————————–
कल सियासत उनके बारे में भी सोचेगी कभी।
जिनकी किस्मत सिर्फ़ गैंती फावड़े हो जाएंगे।।
——————————–
सफ़र में जिंदगी के मोड़ कुछ ऐसे भी आते हैं।
जहां से लौटने का रास्ता कोई नहीं होता।।
——————————–
कल जो हंगामा हुआ था माजरा कुछ और था।
आज के अख़बार में लेकिन छपा कुछ और है।।
——————————–

तमाम सामाजिक विषमताओं से रावत जी नाउम्मीद हो गए हों ऐसा नहीं है। वह लोगों में उम्मीद भी जगाते हैं। देखिएः

आज जो ग़जलों के पौधे हमने रोपे हैं यहां।
दूर तक महकेंगे एक दिन सब हरे हो जाएंगे।।
——————————–

रावत जी के यहां मुहब्बत के शेर भी खूबसूरत एहसास लिए हुए हैं। इसकी बानगी देखिएः

पास होता है बहुत दिल के वो।
जो निगाहों से दूर होता है।।
और
कोई समझाए इस ज़माने को।
इश्क़ भी क्या फि़तूर होता है।।

——————————–
आजकल मंचों पर होने वाली शायरी में गिरावट को लेकर भी रावत जी की बेचैनी साफ झलकती है, इसीलिए वह कहते हैंः
मेरी मंजिल ही नहीं हैं मंच माइक चुटकुले।
मेरी मंजिल का ठिकाना और पता कुछ और है।।

अहमियत चुटकुले वालों की कुछ कम नहीं लेकिन।
उन्हें इज्जत नहीं मिलती मुझे पैसा नहीं मिलता।।

कुल मिलाकर रावत जी की ग़जलें दुष्यंत की कहन की परंपरा को और आगे बढ़ाती हैं। इसमें कोई शक़ नहीं है। रावत जी को आने वाली किताबों के लिए शुभकामनाएं।
——————————–
अशोक रावत जी को किताब के लिए बधाई देना चाहें तो मोबाइल नंबर 8433049896 पर दे सकते हैं और संपर्क करना चाहें या चिट्ठी भेजना चाहें तो इस पते
अशोक रावत, 222, मानस नगर, शाहगंज, आगरा 282010 पर भेज सकते हैं।।
——————————–
दर्द गढ़वाली, देहरादून
09455485094

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button