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मनमानी: उर्दू अकादमी के मुशायरों में हिंदू शायरों की उपेक्षा क्यों?

*उर्दू अकादमी समेत सभी सरकारी विभागों के मुशाइरे और अन्य उर्दू प्रोग्राम में हिंदुओं को मिलनी चाहिए मुस्लिमों से अधिक हिस्सेदारी, उर्दू सिर्फ़ मुसलमानों की नहीं बल्कि पूरे हिन्दुस्तानी समाज की भाषा है, जातीय जनगणना होने तक पिछली जनगणना को बनाया जाए आधार, सरकारी मुशाइरों और अन्य उर्दू प्रोग्रामों में सरकारी नौकरियों और राजनीति में लागू आरक्षण फार्मूला अपनाया जाए

इंदौर: ये एक बड़ी अजीब बात है कि कि अगर कोई हिन्दू सौ बार मुस्लिम हित की बात करे तो उसे बहुत कम मुस्लिम बुद्धिजीवियों का समर्थन हासिल होता है लेकिन अगर वही हिंदू किसी जायज़ मामले में हिंदुओं के हित में कोई एक बात ही कह दे तो उसके आस-पास के ज़ियादातर मुस्लिम उसे सांप्रदायिक करार देने में एक पल की भी देरी नहीं करते। ख़ैर मुझे न तो ऐसे लोगों के समर्थन की ज़रूरत है और न किसी तरह के सर्टिफिकेट की। मुझे बस ईमानदारी से अपनी बात कहने से मतलब है। हर व्यक्ति कुछ भी राय क़ायम करने के लिए स्वतंत्र है और मैं उसकी इस स्वतंत्रता का हिमायती हूं।


दोस्तो! आज मैं एक बहुत अहम बात करने जा रहा हूं और वो बात *सरकारी फंड से होने वाले उर्दू प्रोग्रामों* के बारे में है। इसमें उर्दू अकादमियां, नगर निगम, नगर पालिका और वो तमाम सरकारी विभाग जहां मुशाइरों या उर्दू भाषा का कोई भी कार्यक्रम करवाने के लिए सरकार फंड उपलब्ध करवाती है।
मैंने अब तक देखा है कि उर्दू अकादमी के मुशाइरे में अस्सी फी़सद मुस्लिम और बीस फी़सद हिंदू शाइर शामिल किए जाते हैं जबकि उर्दू भाषा सिर्फ़ मुसलमानों की नहीं बल्कि ये पूरी हिन्दुस्तानी कौम की भाषा है। तो मेरा पहला सवाल ये कि फिर उर्दू अकादमी का हिंदू शु’अरा से ये भेदभाव क्यों? मेरा दूसरा सवाल ये है कि जब सरकार ने सरकारी नौकरियों में और राजनीति में आरक्षण लागू कर रखा है ताकि सभी वर्गों को उनका प्रतिनिधित्व मिले तो फिर सरकारी मुशाइरे में अब तक ये आरक्षण क्यों लागू नहीं है। म.प्र. उर्दू अकादमी सरकारी मुशाइरे में हिंदुओं को उनके हक़ के मुताबिक प्रतिनिधित्व क्यों नहीं दे रही है ?

*जातीय जनगणना होने से पहले 2011 की जनगणना को बनाया जाए आधार-*
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कुछ दिनों पहले ही भारत सरकार ने जातीय जनगणना करवाने का ऐलान किया है। इसे पूरा होने में अभी काफ़ी वक़्त लगेगा। मेरे विचार से तब तक उर्दू अकादमी समेत तमाम सरकारी विभागों में होने वाले उर्दू प्रोग्रामों के लिए 2011 की जनगणना को आधार बनाया जा सकता है। उस जनगणना के मुताबिक भारत में मुस्लिम आबादी 15 फ़ीसद और हिन्दू आबादी 85 फ़ीसद है। चूंकि उर्दू पर सभी का हक़ है तो इस जनगणना के आधार पर हर सरकारी मुशाइरे में 15 फ़ीसद मुस्लिम शाइर होने चाहिए और 85 फ़ीसद हिंदू शाइर। *जिसकी जितनी भागीदारी,उसकी उतनी हिस्सेदारी* का यही फार्मूला उर्दू के हर प्रोग्राम में लागू किया जाना चाहिए। क्योंकि इन सरकारी उर्दू प्रोग्राम का मक़सद साहित्यिकारों को आर्थिक मदद करना भी होता है और इसके लिए ये बाकायदा पेमेंट देते हैं। अब तक इसका सबसे ज़ियादा फ़ायदा सिर्फ़ मुस्लिम शाइरों को ही मिलता आ रहा है और हिन्दू शु’अरा अपनी कम हिस्सेदारी की वजह से बरसों से घाटा ही उठाते आ रहे हैं।

*हिंदुस्तान में उर्दू को लोकप्रिय बनाने में सबसे ज़ियादा योगदान हिंदुओं का-*
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इतिहास गवाह है कि हिंदुस्तान में जब इस्लाम आया, उस वक़्त यहां अरबी जानने वाले नौ-मुस्लिम बहुत कम थे। इस वजह से उन्हें क़ुरान पढ़ना मुश्किल हो रहा था। कश्मीर में ये ज़िम्मेदारी कश्मीरी पंडितों ने निभाई वहीं बिहार और उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों के साथ कायस्थों ने मुसलमानों को क़ुरान पढ़ाने का ज़िम्मा लिया क्योंकि वो मुगल सल्तनत के आने के बाद से ही राजकीय कार्यों में अपनी अरबी-फ़ारसी भाषा की दक्षता की वजह बड़े पदों पर भी थे। विभाजन से पहले देश में जो प्रिंटर थे उनमें से कई हिंदू प्रिंटिंग प्रेस वाले क़ुरान शरीफ़ भी प्रिंट करते थे। उन्हीं हिंदू प्रिंटर्स की वजह से मुस्लिमों तक क़ुरान पंहुचती थी।अल्लामा इक़बाल ख़ुद एक कश्मीरी पंडित परिवार से थे जो बाद में इस्लाम में दाख़िल हुआ।
उर्दू के भी जन्म से लेकर आजतक उर्दू भाषा और उर्दू अदब में हिंदुओं का एक बड़ा योगदान रहा है। फ़िराक़ गोरखपुरी सा. ने उर्दू भाषा के बनावट और उसमें किस-किस ने अपनी अहम भूमिका निभाई है, इस पर किताब लिखी है जो साबित करती है कि उर्दू को लोकप्रिय बनाने में हिंदुओं का बड़ा योगदान रहा है।

*इंदौर में भी कई हिंदू शाइर उर्दू पढ़-लिखकर कर रहे हैं शाइरी-*
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आज म.प्र. उर्दू अकादमी ने जिस तजदीद साक़ी को इंदौर का ज़िला कार्डिनेटर बना रखा है, वो बेचारा ठीक से उर्दू तो छोड़िए हिंदी भी नहीं लिख सकता। लेकिन इस शह्र में ऐसे कई हिंदू शु’अरा मौजूद हैं जो बाकायदा उर्दू पढ़-लिखकर शाइरी कर रहे हैं लेकिन उन्हें आज तक उर्दू अकादमी ने कोई मंच उपलब्ध नहीं करवाया। जबकि इस तजदीद साक़ी पर उर्दू अकादमी की प्रमुख इतनी मेहरबान हैं कि रमज़ान महीने से पहले उसे सरदारपुर ज़िला धार में हुए अकादमी के प्रोग्राम में *विशेष आमंत्रित शाइर* के रूप में बुला कर शानदार पेमेंट दिया। बड़े अफ़सोस की बात है कि 45 से शाइरी के मैदान में अपने जौहर दिखलाने वाले और बेहतरीन उर्दू जानने वाले *रवि शबाब (जो जैन समाज से हैं)* को आज तक उर्दू अकादमी ने अपना मंच नहीं दिया। वे जबकि वो उस्ताद साग़र चिश्ती उज्जैनी साहब के बहुत होनहार शागिर्द रहे हैं और उन्होंने कई बड़े-बड़े आल इंडिया मुशाइरे पढ़े हैं।
मैं म.प्र. उर्दू अकादमी को ये जानकारी दें दूं कि इनके अलावा क़रीब 20 सालों से शाइरी में अपना कमाल दिखाने वाले *विकास जोशी ‘वाहिद’ (जो ब्राह्मण हैं)* भी बाकायदा उर्दू पढ़-लिखकर शाइरी कर रहे हैं। मराठी परिवार से आने वाले *निलेश शेवगांवकर* जो *’नूर’* तख़ल्लुस से शाइरी करते हैं, उनकी *अरूज़* पर भी ज़बरदस्त पकड़ है। उन्हें भी आज तक नुसरत मेहदी ने अकादमी के किसी मुशाइरे में मौक़ा नहीं दिया। कैट संस्थान में कार्यरत *रवि कुमार ‘आतिश’* भी जैन समाज समाज से आते हैं लेकिन वो भी उर्दू में अच्छी-ख़ासी दख़ल रखते हैं लेकिन नुसरत मेहदी की उन पर भी अभी तक नज्र-ए-करम नहीं हुई है। इंदौर के उस्ताद शाइर *जनाब अनवर सादिक़ी सा.* के एक हिन्दू शागिर्द *हरीश साथी जो ठाकुर समाज से आते हैं*, और जो अब ख़ुद बुज़ुर्गी में पंहुच चुके हैं, उन्हें भी म.प्र. उर्दू अकादमी ने बरसों पहले एक बार फ़िलबदी मुशाइरे में जांच भी लिया लेकिन आज तक अपना मंच नहीं दिया।
कैट संस्थान में कार्यरत एक और बेहतरीन शाइर *प्रदीप कांत जी* को ग़ज़ल की विधा में शानदार काम करने के लिए पहले से ही कुछ पुरस्कार मिल चुके हैं लेकिन हाल ही में उन्हें *30 April 2025 को श्री मध्य भारत हिंदी साहित्य समिति इंदौर* द्वारा ग़ज़ल को लगातार समृद्ध बनाने के उनके योगदान को सराहते हुए *प्रो. सूर्य प्रकाश चतुर्वेदी सम्मान* से नवाज़ा है। म.प्र. उर्दू अकादमी की तरफ़ से ऐसे हिन्दू शाइर को भी आजतक कोई मंच प्रदान नहीं किया गया है।
इंदौर के और *उस्ताद नसीर अंसारी सा.* के बेहतरीन शागिर्द *दिनेश दानिश* भी क़रीब 25 सालों से शाइरी के मैदान में हैं लेकिन इन 25 सालों में उर्दू अकादमी ने उन्हें सिर्फ़ एक मुशाइरे में मौक़ा दिया है। जबकि *दिनेश दानिश* कई आल इंडिया मुशाइरे पढ़ चुके हैं और उनकी एक किताब जल्द ही मंज़र-ए-आम पर आने वाली है।
*उस्ताद नसीर अंसारी* के एक और शानदार शागिर्द *बालकराम शाद*, जो अब बुज़ुर्गी में पंहुच चुके हैं और अपना एक पैर भी खो चुके हैं, वो भी आजतक उर्दू अकादमी की नाइंसाफी का शिकार हैं।
*उस्ताद नसीर अंसारी सा.* के और हिन्दू शागिर्द *प्रेम सागर* जो बाकायदा उर्दू पढ़-लिख लेते हैं और पिछले 22-23 सालों से ग़ज़लें कह रहे हैं लेकिन प्रदेश उर्दू अकादमी के मंच से अभी तक महरूम हैं।

*नये हिंदू शु’अरा भी कर रहे हैं चौंकाने वाली शाइरी-*
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इंदौर में इन दिनों नयी नस्ल के हिंदू शु’अरा बहुत कमाल की शाइरी कर रहे हैं। शह्र के सीनियर शाइर युसूफ़ मंसूरी सा. ने हाल ही में हुई एक नशिस्त में जब कुछ नौजवान हिंदू शु’अरा को सुना तो उन्होंने ख़ुशी ज़ाहिर करते हुए कहा कि ये लड़के ज़रूर सही मायनों में शाइरी कर रहे हैं। इनकी शाइरी में न तो नारेबाज़ी है और न शोर-शराबा। इनमें एक नयी तलाश की जुस्तजू है जो शाइरी के मुस्तकबिल के लिए एक बेहतरीन अलामत है।
इंदौर में जिन हिन्दू नौजवानों में ताज़ाकारी देखने को मिल रही है, उनमें
*धनंजय कौसर, आदर्श राजपूत,यश शुक्ला, आदित्य ज़रख़ेज़, धीरज चौहान, परमजीत सिंह मीत, जी.आर. वशिष्ठ और सचिन विराट* के नाम पर आप गर्व कर सकते हैं।
इसी तरह मुस्लिम नौजवानों में ख़ालिस शाइरी करने वालों की फेहरिस्त में *शहनवाज़ अंसारी और नोमान अली* पर आप फ़ख़्र कर सकते हैं जिन्होंने आम मुशाइरेबाज़ शु’अरा की रविश से ख़ुद को बचा कर अपना एक नया रास्ता चुना है जो इंशाअल्लाह उन्हें अपनी मंज़िल तक ले जाएगा।

*सभी को मिलकर बुलंद करना चाहिए इंसाफ़ की आवाज़-*
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सरकार तो सभी वर्गों को उनका प्रतिनिधित्व देने के लिए संकल्पित है और इसी लिए उसने ये सब सरकारी कार्यक्रम चला रखे हैं जिसमें सरकारी नौकरियों में और राजनीति में आरक्षण भी शामिल है। लेकिन सरकार ने अबतक अपनी राज्य सरकारों के अधीन आने वाली *उर्दू अकादमियों* की गतिविधियों पर ध्यान नहीं दिया है। यहां सरकारी फंड की जो बंदर बांट चल रही है और हिंदू अदीबों-शाइरों के साथ पिछले सात दशकों से नाइंसाफी की जा रही है। मुस्लिम अदीबों और शु’अरा में भी अब तक सिर्फ़ उन्हीं को उर्दू अकादमी से फ़ायदा मिला है जो इन अकादमियों के प्रमुखों के क़रीबी हैं। हक़दार मुस्लिम शाइर-अदीब भी इन्हीं हिंदुओं की तरह आज भी सरकार की तरफ़ इंसाफ़ की गुहार लगा रहा है। क्या मध्य प्रदेश सरकार इस दिशा में पहला क़दम उठा कर देश की अन्य उर्दू अकादमियों के लिए मिसाल बनेगी?
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*मध्यप्रदेश का वो कौन नौजवान हिंदू शाइर है जिसका रिश्ता इंदौर से भी रहा है और जिसने उर्दू शाइरी में वो कारनामा अंजाम दिया है कि आज सारी उर्दू दुनिया उसे संजीदगी से पढ़-सुन रही है। कौन है वो नौजवान जो आज शाइरी के मैदान में सैकड़ों नये लोगों की राहनुमाई कर रहा है। जिसकी किताबें छापने के लिए देश का सबसे लोकप्रिय उर्दू प्लेटफॉर्म हमेशा तैयार रहता है लेकिन मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी ने ऐसे बेशकीमती और नायाब शख़्स को भी हाशिए पर डाल रखा है। पढ़िए कल।

✍️ अखिल राज
(पत्रकार,लेखक,शाइर)

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