साहित्य

कितने हैं बेलिबास दरवाजे

दर्द गढ़वाली की ग़ज़ल

कितने हैं बेलिबास दरवाजे।
अब कहां गमशनास दरवाजे।।

छोड़कर जब से वो गया घर को।
किस कदर हैं उदास दरवाजे।।

खिड़कियां शर्म से हुई पानी।
जब हुए बेलिबास दरवाजे।।

क्या हुआ बंद गर हुआ इक दर।
हैं अभी तो पचास दरवाजे।।

आहटों पे भी अब नहीं खुलते।
इस कदर हैं इयास दरवाजे।।

बंद उस घर की क्यों हुई खिड़की।
क्या लगाएं कयास दरवाजे।।

एक मुद्दत हुई हमें बैठे।
इस कदर आए रास दरवाजे।।

खिड़कियां बंद हो गई कब की।
कर रहे इल्तिमास दरवाजे।।

एक दस्तक पे मेरी खुलते थे।
अब कहां हैं वो खास दरवाजे।।

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