उत्तराखंडसेना

तिरंगे में लिपटे सपूत को देखकर बिलख पड़ा परिवार

शहीद हवलदार बसुदेव का पार्थिव शरीर पहुंचते ही पूरा गांव शोक में डूबा, हजारों ग्रामीणों ने ने आंखों से दी अंतिम विदाई

गैरसैंण (चमोली): गैरसैंण में सारकोट गांव निवासी और सेना के बंगाल इंजीनियर में हवलदार बसुदेव सिंह का पार्थिव शरीर सोमवार को रक्षाबंधन के दिन जैसे ही घर पहुंचा तो पूरा गांव में शोक में डूब गया। रक्षाबंधन की खुशियां मातम में बदल गई। हालांकि बड़ी संख्या में पहुंचे लोगों ने बसुदेव जिंदाबाद, भारत माता की जय के नारे लगाए, वहीं उनकी पत्नी, बहन और भाई पार्थिव शरीर से लिपट कर रो पड़े। भाई जगदीश सिंह ने शहीद को मुखाग्नि दी।

     शहीद बासुदेव सिंह की अंतिम यात्रा में सैकड़ों की संख्या में लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा. रुद्रप्रयाग से उनके पार्थिव शरीर को लेकर आए 55 बंगाल इंजीनियरिंग के ओर्डीनरी कैप्टेन अवतार सिंह और 6 ग्रिनेडियर के तीन अधिकारी व 15 सैनिकों की टुकड़ी ने बलिदानी को सशस्त्र सलामी दी. शहीद का अंतिम संस्कार उनके पैतृक घाट मोटूगाड में किया गया. शहीद को मुखाग्नि उनके बड़े भाई जगदीश सिंह ने दी.

   सारकोट के पूर्व प्रधान राजे सिंह ने बताया कि बसुदेव करीब 13 साल पूर्व सेना में भर्ती हुए थे। वह वर्तमान में लेह में सेवारत थे। बताया कि अचानक 16 अगस्त को बसुदेव के पिता पूर्व सैनिक हवलदार फते सिंह को शाम 6 बजे यूनिट से हवलदार बसुदेव की निर्माण कार्य के दौरान दुर्घटना से मौत होने की खबर मिली थी।खबर के बाद उनकी पत्नी नेहा देवी, माता माहेश्वरी देवी का रो रो कर बुरा हाल है। करीब 31 साल के बसुदेव के दो पुत्र 6 तथा 2 साल के हैं। उनकी माता माहेश्वरी दो साल से बीमारी के कारण बिस्तर पर लेटी जिंदगी और मौत से जंग लड़ रही है।

 

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