
ग़ज़ल
ख़त मेरा जब पाया होगा।
वो भी तो इतराया होगा।।
घर लगता है घर सा मुझको।
वो शायद घर आया होगा।।
देख दरीचे से फिर मुझको।
मन ही मन शरमाया होगा।।
आग लगाई घर पर मेरे।
मेरा ही हमसाया होगा।।
उसने दी होगी जब दस्तक।
दिल उसका घबराया होगा।।
चांद दिखा भूखे बच्चों को।
मन उसने बहलाया होगा।।
दिल में धड़का सा है कोई।
शायद कासिद आया होगा।।
दर्द गढ़वाली, देहरादून
09455485094
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