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आबकारी विभाग ने भरा सरकारी खजाना

31 मार्च 2025 को समाप्त हुए वित्तीय वर्ष में सरकार की झोली में डाले 4360 करोड़ रुपये

देहरादून: शराब का सेवन बेशक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। इसे बढ़ावा नहीं दिया जा सकता है, लेकिन राजस्व की बात हो तो उत्तराखंड में सरकार की झोली भरने में इसका स्थान दूसरा है। न्यूनतम उपभोग और अधिकतम राजस्व की चुनौती के बीच आबकारी विभाग ने 31 मार्च 2025 को समाप्त हुए वित्तीय वर्ष में सरकार की झोली में 4360 करोड़ रुपये डाल दिए। यह आंकड़ा वर्ष 2021-22 के मुकाबले 1100 करोड़ रुपये अधिक है। प्रदेश के कमाऊ पूत कहे जाने वाले विभागों की बात की जाए तो आबकारी विभाग से आगे सिर्फ स्टेट जीएसटी (राज्य कर) विभाग ही है।
राज्य कर विभाग राजस्व बढ़ाने के लिए तरह-तरह से प्रचार-प्रसार कर सकता है। बिल लाओ इनाम पाओ योजना भी इसी का हिस्सा रही। स्टांप एवं रजिस्टेशन, खनन और वन निगम जैसे विभाग/एजेंसी भी अपना राजस्व बढ़ाने के लिए समुचित प्रचार-प्रसार कर सकती हैं। लेकिन, समाज की सेहत को ध्यान में रखते हुए आबकारी विभाग नैतिक रूप से भी ऐसा नहीं कर सकता है। बल्कि उसे तो एक तरफ शराब को हतोत्साहित करना है और दूसरी तरफ सरकार को अधिक से अधिक राजस्व कमाकर भी देना है।
इन तमाम बातों को ध्यान में रखते हुए ही आबकारी विभाग ने अपनी नीति में आवश्यक बदलाव किए हैं। राजस्व बढ़ोतरी पर ध्यान केंद्रित करने के साथ ही राज्य में स्थापित होने वाले मदिरा संबंधी उद्योगों में प्रत्यक्ष रोजगार के लिए कम से कम 80 प्रतिशत स्थानीय लोगों को भी प्राथमिकता दी जा रही है। आबकारी आयुक्त एचसी सेमवाल के अनुसार नीति से मूल निवासियों की व्यावसायिक भागीदारी और रोजगार अवसरों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। अप्रत्यक्ष रूप से भी आपूर्ति श्रृंखला, परिवहन तथा सहायक सेवाओं में उत्तराखण्ड के निवासियों को बड़े पैमाने पर लाभ पहुंच रहा है।
राजस्व अधिक और खर्चे कम
आबकारी विभाग जहां प्रदेश सरकार को राजस्व देने में अग्रणी भूमिका में है, वहीं स्वयं पर इसके खर्चे बेहद सीमित हैं। इसकी अहम वजह विभाग का राज्य या दूसरे विभागों से आकार में छोटा होना भी है। यही कारण है कि वित्तीय वर्ष की समाप्ति के अंतिम दिन जहां 29 विभागों ने एक ही दिन में 10 हजार करोड़ रुपये से अधिक की राशि खर्च कर डाली, आबकारी विभाग इस मामले में निचले पायदान में रहा। इन विभागों ने जमकर इसलिए भी खर्च किया, क्योंकि आबकारी और राज्य कर जैसे विभाग अच्छी खासी कमाई करते हैं और उससे राज्य के विकास के पहिए को गति मिलती है।
प्रदेश में सर्वाधिक राजस्व देने वाले विभाग
नाम, राशि (करोड़ रु. में)
राज्य कर, 9256
आबकारी, 4360
स्टांप एवं रजिस्ट्रेशन, 2635
खनन, 1035
वन, 574

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